केरल के नौ कुलपतियों को पद पर बने रहने के निर्देश, हाई कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को बताया अनुचित

माकपा राज्य सचिवालय ने आरोप लगाया कि यह फैसला लोकतंत्र की सभी सीमाओं का उल्लंघन करता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह राज्य में विकास की राह को बेपटरी करने के लिए केंद्र की एक चाल है।
केरल में राज्य की नौ यूनिवर्सिटियों में कुलपतियों की नियुक्ति के मामले में नया मोड़ आ गया है। केरल हाई कोर्ट ने सोमवार को आठ विश्वविद्यालयों के कुलपति से कहा कि वह अपने-अपने पद पर रहकर काम जारी रखें और उन्हें केवल तय प्रक्रिया का पालन करके ही हटाया जा सकता है।
जस्टिस देवन रामचंद्रन ने आठ कुलपतियों की ओर से दायर आपात याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्यपाल की ओर से कुलपतियों को दिया गया निर्देश उचित नहीं था। गौरतलब है कि राज्यपाल ने इन आठ कुलपतियों को सोमवार तक इस्तीफा देने की चेतावनी दी थी। अदालत ने विशेष सुनवाई के दौरान कहा, वे अपने पद पर बने रहने के पात्र हैं।
अदालत ने पाया कि कुलाधिपति ने कुलपतियों को कारण बताओ नोटिस जारी करके तीन नवंबर तक यह बताने के लिए कहा था कि क्यों ना उन्हें पद से हटा दिया जाए। इस आधार पर अदालत ने कहा कि कुलपतियों को इस्तीफा देने का निर्देश देने का कोई महत्व नहीं है।
अदालत ने कहा कि कुलपतियों के खिलाफ केवल तय प्रक्रिया का पालन करके कार्रवाई की जा सकती है। कुलपतियों ने अदालत से कहा कि 24 घंटों के अंदर इस्तीफा देने का राज्यपाल का निर्देश पूरी तरह अवैध था। बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी अपना फैसला सुना चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. राजश्री एम एस की नियुक्ति को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार, राज्य द्वारा गठित खोज समिति को कुलपति पद के लिए इंजीनियरिंग विज्ञान क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोगों के बीच से कम से कम तीन उपयुक्त व्यक्तियों के एक पैनल की सिफारिश करनी चाहिए थी, लेकिन इसके बजाय उसने केवल एक ही नाम भेजा।