Koshala Literature Festival: राजनीति में ‘एक्सक्यूज’ का दौर हुआ खत्म, अब परफॉर्मेंस का है समय

जयदीप कार्णिक ने पूछा कि आज सांसद, विधायक नहीं, मोदी को जिताया जाता है, कहीं ऐसा तो नहीं यह अधिनायकवाद की ओर बढ़ते कदमों की आहट है? इस पर विजय त्रिवेदी ने कहा कि नरेंद्र मोदी हों, ममता बनर्जी या फिर अरविंद केजरीवाल… आज की लीडरशिप अहम ब्रह्मास्मि की सोच वाली हो गई है।
कोशल लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन रविवार को संगीत नाटक अकादमी में एक ओर जहां विशुद्ध राजनीति पर बेबाकी से चर्चा हुई। वहीं नए नेतृत्व के दौर पर विचार विमर्श किया गया, वहीं अवध के जायकों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध होकर सुनने को मजबूर कर दिया। लखनऊ के इतिहास, कला-संस्कृति व धरोहरों के संरक्षण पर जोर दिया गया तो विजुएल स्टोरी टेलिंग की बारीकियों से भी दर्शकों को रूबरू कराया गया। अमर उजाला कार्यक्रम का मीडिया पार्टनर है।
‘नए नेतृत्व का दौर’ विषय पर अमर उजाला डिजिटल के संपादक जयदीप कार्णिक ने कहा कि जबरदस्त संक्रमणकाल चल रहा है। मुलायम सिंह यादव, अटल बिहारी बाजपेयी, जयललिता आदि नहीं रहे, नए नेताओं का उदय हो रहा है। लेखक विजय त्रिवेदी ने कहा कि आजादी मिलने के बाद सरकारों के पास यह एक्सक्यूज था कि अंग्रेजों ने ही जर्जर हिंदुस्तान दिया, जिसे सुधार रहे हैं। ढांचा बना रहे हैं। जनता ने फिर भी उन्हें चुना। बाद में नेताओं के पास इमरजेंसी का एक्सक्यूज था। उसके बाद यह एक्सक्यूज था कि पिछली सरकारों ने कुछ नहीं किया, इसलिए देश की हालत ऐसी है। लेकिन अब एक्सक्यूज, का दौर खत्म हो रहा है। अब परफार्मेंस देनी होगी, एक्सक्यूज से काम नहीं चलेगा।
वहीं शांतनु गुप्ता, जिन्होंने मोंक हू बिकेम चीफ मिनिस्टर किताब लिखी, बताया कि अब नरेंद्र मोदी ब्रांड पॉलिटिक्स का दौर है। एक आईएएस अफसर ने उन्हें बताया कि यूपी में 2017 से पहले वाली सरकार में दोपहर 12 से एक बजे तक कॉल आती थी, आज के दौर में सुबह सात बजे ही महाराज जी की कॉल आ जाती है। एमवाई, मीम भीम वाली राजनीति का दौर खत्म हो चुका है। सोशल मीडिया का समय है, जहां एक्सक्यूज नहीं चलते। अब तो विधानसभाओं के वीडियो वायरल होते हैं और लोग बेबाकी से उस पर अपनी राय रखते हैं। 24 घंटे, सातों दिन, पूरे साल राजनीति करनी पड़ेगी।
जयदीप कार्णिक ने सवाल किया कि भारत का नए नेतृत्व के तौर पर उदय हो रहा है, रूस यूक्रेन युद्ध हो या आर्थिक मोर्चा, भारत की भूमिका को कैसे देखते हैं? इस सवाल पर विजय त्रिवेदी ने कहा कि एक सीएम को एक देश ने वीजा देने से इनकार कर दिया था, आज वही देश उस व्यक्ति के पीएम होने पर रेड कारपेट बिछाए खड़ा है। यह बदलाव है। शांतनु गुप्ता ने कहा कि अभी तक यह सोच रही थी कि पश्चिम की मान्यता मिल जाए बस। लेकिन अब यह मिथक भी खत्म हो रहा है।
अहम ब्रह्मास्मि की सोच पर चल रही लीडरशिप
जयदीप कार्णिक ने पूछा कि आज सांसद, विधायक नहीं, मोदी को जिताया जाता है, कहीं ऐसा तो नहीं यह अधिनायकवाद की ओर बढ़ते कदमों की आहट है? इस पर विजय त्रिवेदी ने कहा कि नरेंद्र मोदी हों, ममता बनर्जी या फिर अरविंद केजरीवाल… आज की लीडरशिप अहम ब्रह्मास्मि की सोच वाली हो गई है। इसका नुकसान यह है कि जब सत्ता खत्म होगी तो पार्टी ध्वस्त हो जाएगी। पार्टियों का आंतरिक लोकतंत्र खत्म हो रहा है, सामूहिक नेतृत्व खत्म हो रहा है।
भीमबेटका के पेंटिंग के दौर में लौट रहे हैं
‘एरा ऑफ विजुअल स्टोरीटेलिंग’ विषय पर लेखक आनंद नीलकंठन ने कहा कि हमारे यहां लंबी कहानियों की परंपरा रही है। कथकली से ही जो पेश किया जाता है, वह चार से सात दिन चलता है। यही वजह है धारावाहिकों में जो सीन चलते हैं, वे वर्षों चलाए जाते हैं। प्रेग्नेंसी के ही सीन तीन तीन साल चलते हैं। उनकी इस बात पर दर्शक हंस पड़े। उन्होनें कहा कि आज की तारीख में शब्द अप्रासंगिक हो गए हैं। कहानी कहने का फॉरमेट बदल चुका है। महाभारत हो या रामायण पहले स्टोरी काव्य रूप में कही जाती थी। लेकिन अब मोबाइल ने सब बदलकर रख दिया है। शब्दों की जगह इमोजी ने ली है। ऐसा लगता है, जैसे हम वापस भीमबेटका के पेंटिंग के दौर में वापस लौट आए हैं, जहां कहानियां शब्दों नहीं, चित्रों के जरिये कही जाती थीं। उनके साथ संवाद कर रहे प्रो. पुष्पेश पंत ने लैंग्वेज ऑफ विजुअल स्टोरीटेलिंग के बारे में पूछा तो आनंद ने कहा कि अब इसके लिए लैंग्वेज और साक्षरता की बाध्यता खत्म हो गई है। उन्होंने कहा कि ओटीटी के लिए लिखना नॉवेल राइटिंग टाइप हो गया है।
अहमदाबाद की तरह लखनऊ को बनाएं हेरिटेज सिटी
फेस्टिवल के तहत गंगा लॉन में ‘द रोमांस ऑफ लखनऊ’ विषय पर नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला, जयंत कृष्ण, लामार्ट प्रिंसिपल कार्लाइल मैक फरलैंड, सनकदा की माधवी कुकरेजा के बीच बातचीत हुई। जाफर मीर अब्दुल्ला ने कुछ यूं अपना पक्ष रखा ‘ए शहर ए लखनऊ तुझे मेरा सलाम है, तेरा ही दूसरा नाम जन्नत का नाम है।’ उन्होंने कहा कि जब मुगल कमजोर पड़ रहे थे और ईस्ट इंडिया कंपनी मजबूत हो रही थी, उस वक्त नवाब आसिफुद्दौला ने कलाकारों को लखनऊ बुलाया और लखनऊ को बुलंदियों पर पहुंचाया। उनके बाद वाजिद अली शाह ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।
उन्होंने यह भी कहा लखनऊ को अहमदाबाद की तर्ज पर हेरिटेज सिटी के तौर पर प्रोत्साहित किया जाए। लामार्ट के प्रिंसिपल कार्लाइल मैक फरलैंड ने कहा कि अपने स्मारकों से प्यार करें। सिविक सेंस पैदा करना जरूरी है। गंदगी फैलाना रोमांस नहीं है। होस्ट जयंत कृष्णा ने लमार्ट के आम लोगों के लिए खोले जाने के बाबत सवाल फरलैंड से पूछा, जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि पर्यटकों के लिए इसे खोला गया है। कोई पाबंदी नहीं है। पर पेड़ों के नीचे बैठकर गलबहियां करने के लिए लमार्ट नहीं है। माधवी कुकरेजा ने कहा कि रोमांस के बिना जिंदा कौन है? लखनऊ वालों के दिलों में रोमांस बचता है। उन्होंने यह भी कहा कि अतीत को वर्तमान से जोड़कर इस रोमांस को बचाने का प्रयास किया जा सकता है।
विभाजन के बाद यूपी बिहार में बना उर्दू के खिलाफ माहौल
चूंकि देश का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था, ऐसे में पार्टीशन के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार में उर्दू के खिलाफ माहौल बना। यह जानकारी उर्दू शायरी की वेबसाइट रेख्ता के फरहत एहसास ने ‘बहुत जमीन थोड़ा आसमान’ विषय चर्चा में दी। उन्होंने टेक्नोलॉजी के दौर में शायरी का मतलब सवाल पर जवाब दिया कि जैसे पहिये का अविष्कार क्रांतिकारी था, वैसे ही टेक्नोलॉजी से तरक्की हुई है। लेकिन यह तरक्की भौतिक है। इंसान के अंतरतम से शायरी का ताल्लुक होता है। उन्होंने यह भी कहा कि शायरी अलग है और जूता बनाना अलग। छंद के बगैर जो शायरी होगी, उसमें रस नहीं होगा। मंच पर अभिषेक शुक्ल और मनीष शुक्ल से उनकी गुफ्तगू हुई। इसी क्रम में देवदत्त पटनायक व शरद बिंदल के बीच गरुड़ पुराण: डेथ एंड च्वॉइसेज ऑफ लाइफ विषय पर भी विचार विमर्श हुआ, जिसमें गरुड़ पुराण के महत्व व जीवन-मृत्यु का वर्णन किया गया।
अनोखी डिशेज का गढ़ है अवध
‘अवध के भूले बिसरे स्वाद’ विषय पर प्रो. पुष्पेश पंत की कोशल लिटरेचर फेस्टिवल में उर्मिला सिंह और नीतू सिंह से बातचीत हुई। उर्मिला सिंह व नीतू सिंह ने बताया कि खानपान का संबंध पुराणों से भी है। पुष्पेश पंत ने बताया कि इनकी पुस्तक में ऐसे ऐसे जायके हैं, जो मुंह में पानी ला सकते हैं। जैसे चोखा चटनी को ही ले लीजिए, दोनों की तासीर व खासियतें अलग हैं। लहसुन के अचार की जो विधि पुस्तक में बताई है, नायाब है। जो कहीं नहीं मिलती। बिना छिलके वाले आम का हींग वाला अचार भी खास है और कच्चे व पके आंवलों का अचार भी शानदार है। नीतू सिंह ने बताया कि मोटे अनाज की डिशेज भी हैं, जिनके बारे में लोगों को बहुत जानकारी नहीं है। वहीं पुष्पेश पंत ने कहा कि पारंपरिक व्यंजनों को मार्केट के अनुरूप नहीं बदला जाना चाहिए। उन्होंने कहा मैंने कल एक पनीर डोसा खाया, जो अंदर से पिज़्ज़ा जैसा था।