करीब एक हजार से अधिक ग्राम पंचायतों को नगरीय निकाय शामिल में किया गया है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में मनरेगा पर संविदा पर एक ग्राम रोजगार सहायक तैनात किए जाते हैं और 50 श्रमिकों पर एक मैट तैनात होता है।
प्रदेश भर में नए नगरीय निकायों के गठन व सीमा विस्तार से मनरेगा के हजारों श्रमिक और सैकड़ों संविदा कर्मी बेरोजगार हो गए हैं। इन श्रमिकों के परिवार मनरेगा के जरिए हर माह बतौर मजदूरी छह से सात हजार रुपये कमा रहे थे। वहीं संविदा कर्मियों को आठ से दस हजार रुपये प्रतिमाह तक मानदेय मिलता था। अब इनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
प्रदेश में 111 नई नगर पंचायतों का गठन और 130 नगरीय निकायों का सीमा विस्तार हुआ है। इसके लिए करीब एक हजार से अधिक ग्राम पंचायतों को नगरीय निकाय शामिल में किया गया है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में मनरेगा पर संविदा पर एक ग्राम रोजगार सहायक तैनात किए जाते हैं और 50 श्रमिकों पर एक मैट तैनात होता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में 20 से 50 मजदूर मनरेगा में काम करते हैं। ग्राम पंचायतों को नगरीय निकायों में शामिल होने से वहां मनरेगा के काम बंद हो गए हैं। इससे हजारों मनरेगा श्रमिक और मैट बेरोजगार हो गए हैं। करीब सात सौ से अधिक ग्राम रोजगार सहायक भी बेरोजगार हुए हैं।
समायोजन की दरकार
सरकार ने बीते वर्ष चुनाव से पहले नगरीय निकाय सीमा में शामिल हुई ग्राम पंचायतों में कार्यरत मनरेगा के संविदा कर्मियों को पड़ोसी की किसी ग्राम पंचायत में समायोजित करने का आदेश दिया था। पर हाल ही में समायोजित हुईं ग्राम पंचायतों के संविदा कर्मियों का समायोजन नहीं हुआ है। ग्राम रोजगार सेवक संघ के अध्यक्ष भूपेश सिंह का कहना है कि मनरेगा के श्रमिकों के लिए शहरों में रोजगार की व्यवस्था करने के साथ संविदा कर्मियों का समायोजन किया जाना चाहिए। उधर, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गांवों में कार्यरत बैंकिंग सखी और महिला स्वयं सहायता समूह भी ग्राम पंचायतों के नगरीय निकाय सीमा में जाने से प्रभावित हुए हैं।